प्रवेश की शर्तें

 

बाहरी दिखावों से निर्णय न करो और लोग जो कहते हैं उस पर विश्वास न करो, क्योंकि ये दोनों चीजें भटकाने वाली हैं । लेकिन अगर तुम्हें जाना जरूरी मालूम होता है, तो निस्संदेह तुम जा सकते हो और बाहरी दृष्टिकोण से शायद यह अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण भी होगा ।

 

  और फिर, यहां रहना आसान नहीं है । आश्रम में कोई बाहरी अनुशासन या दिखायी देने वाली परीक्षा नहीं हे । लेकिन आन्तरिक परीक्षा निरन्तर और कठोर होती है । यहां रहने लायक होने के लिए तुम्हें अपनी अभीप्सा में बहुत सच्चा होना चाहिये ताकि तुम समस्त अहंकार को पार कर सको और मिथ्याभिमान को जीत सको ।

 

  पूर्ण समर्पण की बाहर से मांग नहीं की जाती लेकिन जो लोग यहां बने रहना चाहते हैं उनके लिए यह अनिवार्य है और बहुत-सी चीजें समर्पण की सच्चाई की परीक्षा करने के लिए आती हैं । फिर भी, जो उनके लिए अभीप्सा करते हैं उनके लिए ' कृपा ' और सहायता हमेशा मौजूद रहती हैं और उन्हें श्रद्धा-विश्वास के साथ ग्रहण किया जाये तो उनकी शक्ति असीम होती है ।

 

२० नवम्बर, ११४८

 

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जीवन से और लोगों सें घृणा और विरक्ति के कारण योग के लिए नहीं आना चाहिये ।

 

   कठिनाइयों से भाग जाने के लिए यहां नहीं आना चाहिये ।

 

  प्रेम की मधुरता और संरक्षण पाने के लिए यहां नहीं आना चाहिये, क्योंकि यदि व्यक्ति उचित मनोभाव अपनाये तो भगवान् के प्रेम और संरक्षण का आनन्द हर जगह मिल सकता है ।

 

  जब तुम अपने- आपको पूर्णतया भगवान् की सेवा में दे देना चाहो, जब अपने-आपको पूर्णतया भगवान् के कार्य के लिए समर्पित करना चाहो, अपने- आपको देने और सेवा करने के आनन्द के लिए देना चाहो, बदले में कुछ मांगें बिना-अपने-आपको देने और सेवा करने की संभावना को छोड़कर-तो तुम यहां आने के लिए तैयार हों और तुम दुरा को पूरी तरह खुला पाओगे ।

 

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  मैं तुम्हें वही आशीर्वाद देती हूं जो मेरे सभी बच्चों को मिलते हैं जो चाहे संसार में कहीं भी क्यों न हों, और तुमसे कहती हूं : '' अपने- आपको तैयार करो, मेरी सहायता हमेशा तुम्हारे साथ रहेगी । ''

 

३० मार्च १९६०

 

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 तुम कहते हो कि तुम आध्यात्मिक जीवन बिताना चाहते हो, लेकिन उसके लिए तुम्हें समझ लेना चाहिये कि पहली चीज है समस्त निम्न गतिविधियों, समस्त आकर्षणों, समस्त आसक्तियों पर विजय पाना, क्यर्ग़ेंक ये सब आध्यात्मिक जीवन के एकदम विपरीत हैं ।

 

   आध्यात्मिक जीवन यह मांग करता हे कि तुम ऐकांतिक भाव से भगवान् की ओर और केवल भगवान् की ही ओर मुंडे रहो । तुम जो कुछ करो वह भगवान् के लिए ही किया जाये; तुम्हारे समस्त कार्य, समस्त अभीप्साएं, सब की सब बिना अपवाद के, समस्त सत्ता के पूर्ण समर्पण के साथ भगवान् की ओर ही उन्यूख हों ।

 

   मैं जानती हूं कि यह एक दिन में नहीं किया जा सकता लेकिन ऐसा हो सके इसका निर्णय अविचल रूप में किया जाये । केवल इसी शर्त पर मैं तुम्हें आध्यात्मिक जीवन के लिए स्वीकार कर सकतीं हूं ।

 

२१ जुताई, १९६०

 

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 किन्हीं पोतिक परिस्थितियों से कहीं अधिक आदर्श के प्रति निष्ठा और कार्य के लिए समर्पण सच्चे शिष्य को बनाते हैं ।

 

२५ अगस्त, १९६२

 

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आश्रम मे प्रवेश पाने के लिए

पहली अनिवार्य शत

 

 प्रत्याशी ने अपना जीवन बिना किसी शर्त के भगवान् की सेवा के लिए

 

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अर्पित करने का संकल्प कर लिया हो ।

 

१२ जून, १९६५

 

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परिभाषा के अनुसार आश्रमवासी वह है जिसने अपना जीवन भगवान् की सिद्धि और सेवा के लिए अर्पित करने का संकल्प कर लिया हो ।

 

   इसके लिए चार गुण अनिवार्य हैं, उनके बिना प्रगति अनिश्चित है, बीच-बीच में बाधाएं आती रहती हैं और पहले ही अवसर पर कष्टकर पतन होते हैं :

 

   सचाई, वफादारी, विनम्रता और कृतज्ञता ।

 

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    '' आश्रम का सच्चा बालक '' कहलाने के कौन- से गुण जरूरी है !

 

सचाई, साहस, अनुशासन, सहिष्णुता, भागवत कार्य में सम्पूर्ण श्रद्धा और ' भागवत कृपा ' में अटूट विकास । इन सबके साथ स्थिर, तीव्र और अध्यवसायपूर्ण अभीप्सा और असीम धैर्य होना चाहिये ।

 

२८ दिसम्बर, १९६६

 

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 आश्रम उनके लिए है जो अपने जीवन को भगवान् के अर्पण करना चाहते हों ।

 

जून, १९७१

 

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आश्रम में शिष्य की तरह रहने की

दो अनिवार्य शर्तें

 

 १. यह निश्चय करना कि अंतरात्मा की आवश्यकता को और सब

 

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आवश्यकताओं से पहले स्थान मिलेगा और अन्य आवश्यकताओं को, यानी, शरीर, प्राण और मन की आवश्यकताओं को उसी हद तक संतुष्ट किया जायेगा जिस हद तक वे अंतरात्मा की आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधक न बनें ।

 

  २. इस बात का विश्वास होना कि मैं ऐसी स्थिति मे हू कि हर एक की अंतरात्मा की आवश्यकता को जान सकती हूं और इसलिए मुझे इस बारे में फैसला करने का अधिकार है और मेरे अन्दर क्षमता भी हैं ।

 

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  अगर तुम्हें यह विश्वास नहीं है कि मैं चीजों. और क्यों के परिणाम को पहले से ज्यादा अच्छी तरह देख सकती हूं तो तुम यहां रहने का अधिकांश लाभ खो बैठते हो ।

 

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